नई दिल्ली। देश की सड़कों पर रोज सैकड़ों बम फट रहे हैं लेकिन बे-आवाज। ये बम आतंकियों ने नहीं बिछाए हैं, पर जान-माल के नुकसान के लिहाज से ये आतंकी हमले से भी ज्यादा खतरनाक हैं। हम बात कर रहे हैं सड़कों पर रोज होने वाले हादसों की। यह कम चौंकाने वाली बात नहीं है कि बीते साल इन सड़क हादसों में करीब एक लाख जानें गई।देश की बढ़ती समृद्धि में दाग लगाने वाले सड़क हादसों में तेजी से इजाफा हो रहा है। नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक रोज औसतन 275 लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जा रहे हैं। समृद्धि के साथ वाहनों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। वाहनों की तादाद के लिहाज से देखें तो सड़कें सिमटती जा रही हैं। सड़क पर सुरक्षा को लेकर भी गंभीरता न के बराबर है। ये सभी बातें मिल कर सड़क हादसों का ग्राफ तेजी से ऊपर ले जा रही हैं। आटो कार पत्रिका के संपादक होरमुज सोराबजी कहते हैं कि सड़क सुरक्षा का आलम यह है कि हेलमेट पहनना और सीट बेल्ट बांधना आज भी कुछ बड़े शहरों में ही बाध्यता है। ऐसे में दूसरे उपायों की चर्चा ही बेमानी है।सड़क हादसों में केवल जनहानि ही नहीं होती, विकास पर भी भारी मार पड़ती है। दिल्ली में विश्व बैंक के एक अधिकारी और परिवहन विशेषज्ञ राजेश राहेतगी के अनुसार सड़क हादसों से जो नुकसान होता है, वह जीडीपी का तीन फीसदी तक पहुंच चुका है। बीते साल यह राशि लगभग एक खरब डालर थी। विश्व बैंक का तो दावा है कि सड़क दुर्घटनाएं किसी भी महामारी से ज्यादा नुकसानदेह हैं।सरकार की योजना अगले पांच सालों में सड़कों सहित अवस्थापना सुविधाओं पर पांच सौ अरब रुपये खर्च करने की है। मगर सवाल वही है कि क्या सरकारी तंत्र से लेकर निर्माण एजेंसियों तक फैला भ्रष्टाचार सड़कों की दशा में कोई बड़ा सुधार आने देगा?
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