rashtrya ujala

Sunday, August 24, 2008

टैक्स पर रखें पैनी नजर

तमाम राज्यों में उपहारों का कारोबार करने वाली दिल्ली की कंपनी हैपिली अनमैरीड के रजत तुली और राहुल आनंद को यह काम करते 6 साल हो गए , लेकिन आज भी उन्हें दो अक्षरों के जिस शब्द से सबसे ज्यादा डर लगता है वह है ' कर ' । इसका सबूत लेना हो तो एक बार ओखला के उनके दफ्तर हो आएं जहां आपको एक तख्ती लटकी हुई दिखाई दे जाएगी जिस पर लिखा है- ' कर आसान होने चाहिए। ' तुली कहते हैं , ' हमारी सबसे बड़ी समस्या फॉर्म-सी को लेकर है जो बिक्री कर विभाग जारी करता है और जिसे उस कारोबारी को देना होता है जिससे शेयर खरीदे जाते हैं। फॉर्म-सी का काम बगैर रिश्वत के करना तो जैसे असंभव ही है। बिक्री कर विभाग में पारदर्शिता एक मजाक भर है। ' तुली का असंतोष जायज है और समझ में आता है।
भारत में कर से जुड़े कानून जिस तरीके से बनाए गए हैं , जाहिर है वे समझने के लिए नहीं हैं। उन्हें आंख मूंद कर मान लेने के लिए ही बनाया गया है। यदि आप भारत में एक छोटा-सा कारोबार चला रहे हैं , तो आप शायद इस बात को दिल से समझ पाएंगे। आप चाहे छोटा धंधा चलाएं या बड़ा , कर नियमों को मानना और बाध्यताओं को पूरा करना एक चुनौती से कम नहीं। पिछले कई दशकों से पुराने कर कानूनों में कोई संशोधन नहीं किया गया है और कानून में शामिल तमाम विवादास्पद प्रावधानों पर अदालतों में आज भी मुकदमेबाजी होती ही रहती है।
टीएमएफ सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक नितिन शिंगाला अपनी प्राथमिकता सूची में टैक्स ऑडिट के काम को सबसे ऊपर रखते हैं। शिंगाला कहते हैं , ' आज टैक्स ऑडिट प्रोफेशनल कर्मचारियों और उभरती हुई कंपनियों के लिए एक झंझट से कम नहीं। आय कर कानून की धारा 144 के तहत 10 लाख सालाना कमाने वाले पेशेवरों और 40 लाख सालाना आय वाली कंपनियों को हर साल एक चार्टर्ड एकाउंटेंट से टैक्स ऑडिट करवाने की बाध्यता है। सरकार ने 1994 में ये सीमाएं तय की थीं और तब से इन्हें संशोधित नहीं किया गया है जिसके चलते यह छोटे उद्यमियों के लिए सिरदर्द बन गया है। ' इन नियमों के पक्ष में आम तौर पर यह तर्क दिया जाता है कि छोटी कंपनियां अपने लेखा परीक्षण को लेकर उतना सावधान नहीं रहती हैं। कम से कम इन नियमों के चलते वे इस बाध्यता को तो पूरा कर पाती हैं। शिंगाला पूछते हैं , ' जब सरकार ने नारा दे रखा है- करदाता पर भरोसा करो- तो क्या यह अब भी प्रासंगिक है ?'
एक उदाहरण लें तो बात समझ में आएगी। मान लीजिए कि आप अपने ऑफिस का कायाकल्प करने के लिए एक विदेशी वास्तुकार की सेवाएं लेने जा रहे हैं। आपके रास्ते में यहां भी बिक्री कर कानून आएंगे। सरकार ने करीब सौ ऐसी सेवाओं की पहचान की है जिनके लिए बिक्री कर भुगतान करने की बाध्यता है जिसे 12.36 फीसदी की दर से लिया जाता है। इस मामले में सबसे बड़ी शिकायत यह देखने में आती है कि अभी यह साफ नहीं है कि कौन-कौन सी सेवाएं इस दायरे में आती हैं। इससे काफी भ्रम पैदा होता है। अब मान लें कि यदि आपके द्वारा रखा गया वास्तुकार भारत का होता
, तो उसे सरकार को बिक्री कर का भुगतान करना होता। चूंकि आपने विदेशी वास्तुकार की सेवाएं ली हैं , इसलिए बिक्री कर का बोझ आपको सहना पड़ेगा।इतना ही नहीं , इसके लिए आपकी कंपनी को बिक्री कर प्राधिकरण में ' वास्तुकार ' श्रेणी के अंतर्गत पंजीकरण करवाना होगा , उसके बाद ही आप कर का भुगतान कर सकते हैं। जो भी भारतीय कंपनियां किसी विदेशी प्रोफेशनल की सेवाएं लेती हैं , उन्हें इस नियम का पालन करना होता है। यह नियम चाहे जितना भी मूर्खतापूर्ण नजर आए , लेकिन यह सच है जिसकी कीमत आपको अदा करनी है।
आय कर कानून की धारा 10ए के अंतर्गत मुक्त व्यापार क्षेत्र में लगाए जाने वाले नए कारोबारों को विभिन्न किस्म की रियायतें मिलती हैं। इस बारे में दिल्ली की चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्म जयकुमार तेजवानी एंड कंपनी के सीईओ जयकुमार तेजवानी कहते हैं , ' भले ही यह नियम हो , लेकिन सेज के भीतर निर्माण इकाई लगाने वाली किसी भी कंपनी को सरकार से छूट हासिल करने में बड़ी दिक्कत आती है क्योंकि यह सरकारी प्रणाली अब भी कायदे से लागू नहीं हो सकी है और सेज के भीतर नए उद्यमों के लिए कर लाभ हासिल करना इतना आसान भी नहीं है। '
ठीक इसी तरह स्त्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) , फ्रिंज बेनेफिट टैक्स (एफबीटी) , लाभांश वितरण कर (डीडीटी) आदि के मसले भी काफी जटिल हैं और इनका अनुपालन करना काफी टेढ़ा काम है। ऐसे किसी भी उद्यम के लिए इन जटिल कर नियमों का पालन करने की बाध्यता ठीक नहीं कही जा सकती जो अब भी अपने शुरुआती चरण में हो। तमाम औपचारिकताओं को पूरा करने में जो महत्वपूर्ण वक्त और ऊर्जा जाया होती है , उसे अगर कारोबार में लगाया जाए तो बेहतर नतीजे निकल सकते हैं। शिंगाला कहते हैं , ' हमारी फर्म ने हाल ही में एक सिंगापुर की कंपनी का काम किया था। वहां के नियम इतने आसान थे कि मुझे महीने में एकाध बार ही सिंगापुर जाना पड़ता था , बाकी काम मैं यहीं मुंबई में बैठ कर निपटा लेता था। '
किसी उद्यमी पूंजी द्वारा निवेश प्राप्त उद्यमों के तो शुरुआती चरणों में हाथ ही इतने बंधे होते हैं कि वे कर नियमों का अनुपालन नहीं कर पाते। सीड फंड के मैनेजिंग पार्टनर प्रवीण गांधी कहते हैं , ' हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कर से जुड़े मसलों पर कंपनियों में पर्याप्त जागरूकता है। यदि कंपनी के भीतर कोई सीएफओ नहीं है या उसकी कोई विधि विशेषज्ञ टीम नहीं है , तो हम कंपनी को एक थर्ड पार्टी फर्म से मिलवा देते हैं जो उसे कर से जुड़ी चुनौतियों से निपटने में मदद करती है। ' दरअसल , यह सारी दिक्कत प्रमोटरों की अपर्याप्त जानकारी के चलते आती है। भारत के अतिलघु , लघु और मध्यम उद्यमों के परिसंघ के महासचिव अनिल भारद्वाज कहते हैं , ' जब आप किसी धंधे की शुरुआत करते हैं तो आपको कम अनुभव होने के कारण इस विषय की जानकारी कम होती है जिसका अनावश्यक फायदा कर सलाहकार और अधिकारी उठाते हैं। ' मुंबई की 6 करोड़ के कारोबार वाली कंपनी एयॉन मेडिकल के रंजन रॉय का ही मामला लें। भले ही उन्हें कारोबार में अब 2 साल होने को आए , वह अब भी कर ढांचे को लेकर इतने सहमे रहते हैं कि कानूनी बाध्यताओं को पूरा करने के लिए एडवांस में ही कर जमा कर देते हैं। वह बताते हैं , ' झंझट से बचने के लिए हम अपने मुनाफे की कीमत पर अग्रिम कर भुगतान ही कर देते हैं। ' वह ऐसा इसलिए भी करते हैं क्योंकि कर सलाहकारों का खर्चा वह नहीं उठा सकते। वह कहते हैं , ' बड़ी और छोटी कंपनियों के लिए कॉरपोरेट कर के नियम अलग होने चाहिए क्योंकि इनकी जरूरतें और आकांक्षाएं भी भिन्न होती हैं। ' भारत में कारोबार करने की प्रक्रिया में एक छोटी इकाई को तमाम किस्म की औपचारिकताएं पूरी करनी होती हैं। ऐसी कुछ कर बाध्यताएं आय कर कानून , 1961 में दी हुई हैं। मसलन , कोई भी ऐसी कारोबारी इकाई , जिसका कुल कारोबार , बिक्री या कुल आय किसी पिछले वर्ष में 5 लाख रुपए पार करने की संभावना है और जिसे कोई पैन नंबर अब तक आवंटित नहीं किया गया है , उसके लिए पैन हासिल करना बाध्यता है। इसके अलावा , उसे एक निश्चित अवधि के भीतर कर जमा कराने की बाध्यता भी होती है। फॉक्स मंडल लिटिल के कर सलाहकार अजय गुप्ता कहते हैं , ' कंपनी ने जिसे भी भुगतान किया हो , उसका नाम , पता और पैन नंबर रखना होता है और उसे प्रमाण पत्र भी जारी करना होता है। इन भुगतानों के विवरण के साथ उसे समय-समय पर रिटर्न भी दाखिल करना होता है। इसमें काफी वक्त तो खराब होता ही है , कंपनी की लागत में भी इजाफा होता है। ' कंपनी को सालाना आय कर रिटर्न भी भरना होता है जिसके साथ वित्तीय विवरण और अन्य अनुलग्नक भी जमा किए जाने होते हैं। वित्तीय आंकड़ों को भरने में काफी वक्त लगता है क्योंकि उन्हें एक निश्चित फॉर्मेट में भरना होता है।
आय कर कानून
, 1961 की धारा 115 डब्ल्यूबी के मुताबिक फ्रिंज बेनेफिट वे लाभ , सेवाएं , सुविधाएं या राहत होती हैं जो एक कंपनी अपने मौजूदा और पूर्व कर्मचारियों को प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर देती है। इसमें नियोक्ता द्वारा कर्मचारी को किया गया कोई भी मुआवजा भुगतान और सुपरएनुएशन फंड में नियोक्ता द्वारा किया गया योगदान भी शामिल होता है। इन उद्देश्यों के लिए नियोक्ता को 30 फीसदी की दर पर कर का भुगतान करना पड़ता है जो उपर्युक्त मदों में किए गए खर्च के मुताबिक उसके 5 , 20 या 50 फीसदी हिस्से पर लागू हो सकता है। गुप्ता कहते हैं , ' ये कर कंपनी की मुसीबत को ही बढ़ाते हैं क्योंकि जिन खर्चों को मुनाफे में कटौती के रूप में दिखाया जा सकता है , उन पर आपको एफबीटी देना पड़ता है। कंपनी को इन भुगतानों का विवरण रखना पड़ता है। कभी-कभार सरकार को इनके मद में होने वाली राजस्व में आय से ज्यादा तो इनका पालन करने में कंपनी की लागत पड़ जाती है। '
यदि किसी उद्यम का सालाना कारोबार समीक्षाधीन वर्ष में 40 लाख रुपए को पार कर जाता है , तो उसे अनिवार्य रूप से किसी चार्टर्ड एकाउंटेंट द्वारा अपना लेखा परीक्षण करवाना पड़ता है। यह उस कानूनी लेखा परीक्षण और अन्य किस्म के ऑडिट के अतिरिक्त होता है जो कंपनी को करवाना पड़ता है। इसके अलावा , ऋण लेने में काफी दिक्कत आती है यदि दी गई और ली गई सेवाओं के लिया गया ऋण अलग-अलग अवधि में लिया गया होता है। इस मामले में हर छमाही एसटी-3 और एसटी-3ए फॉर्म भर कर रिटर्न भरना होता है और उसे बिक्री कर मामलों के लिए जिम्मेदार सेंट्रल एक्साइज के सुपरिटेंडेंट को जमा कराना होता है।
इस रिटर्न को पिछली छमाही के आखिरी दिन के अगले 25 दिनों के भीतर जमा कराया जाना होता है और इसमें उक्त छमाही में जारी टी.आर.6 चालानों की प्रतियां भी लगानी होती हैं। यदि इतना सिर दर्द कम नहीं है , तो बता दें कि पहली बार जो उद्यमी रिटर्न भर रहे हैं , उन्हें विभाग को बिक्री कर से संबंधित अपने सभी खातों का विवरण भी मुहैया कराना होता है। इतने उलझाऊ और समझ से परे नियमों का नतीजा क्या होता है , इसे समझने के लिए अमेरिका से लौटे एक उद्यमी योगेश बंसल का मामला उदाहरण के तौर पर लेना सटीक रहेगा जिन्होंने एक सोशल नेटवर्किंग साइट अपनासर्किल डॉट कॉम शुरू की थी। एक साल तक धंधा करने के बाद भारतीय कर ढांचे के मकड़जाल में फंस कर उन्होंने हाथ खड़े कर दिए। वह कहते हैं , ' भारत के कर कानून बहुत भ्रामक हैं और इनका पालन करने में जो वक्त जाया होता है , वह कारोबार के रास्ते में रोड़े ही पैदा करता है। ' योगेश की कहानी सबक है कि आप अपने दफ्तर की दीवारों पर चाहे जितने भी संदेश लटका लें कि- कर आसान होने चाहिए- उसका कोई अर्थ नहीं रह जाता।

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