इस साल पहली तिमाही में इंडस्ट्रिअल प्रडक्शन की विकास दर पिछले साल की पहली तिमाही के मुकाबले आधी रह गई है। इस साल की पहली तिमाही में विकास दर 5.2 फीसदी रही, जबकि पिछले साल की पहली तिमाही में यह 10.3 फीसदी थी। छह कोर इन्फ्रास्ट्रक्चर इंडस्ट्री में पहली तिमाही के दौरान ग्रोथ का आंकड़ा 3.5 फीसदी रह गया, जो पिछले साल की पहली तिमाही में 6.4 फीसदी था।
गौरतलब है कि इंडस्ट्रिअल प्रडक्शन में कोर इन्फ्रास्ट्र्क्चर इंडस्ट्री का हिस्सा 28।68 फीसदी होता है। हालांकि जून में इंडस्ट्रिअल प्रडक्शन की विकास दर में मई के मुकाबले तेजी रही। जून में यह 5.4 फीसदी रही, जबकि मई में 4.1 फीसदी थी। लेकिन पिछले साल जून में इंडस्ट्रिअल प्रडक्शन में 8.9 फीसदी की दर से विकास हुआ था।
ऊँची ब्याज दरों ने विकास की कमर तोड़ी
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के दौरान ब्याज की ऊँची दरों द्वारा विनिर्माण पर लगातार दबाव बनाए जाने के कारण औद्योगिक विकास की दर करीब आधी 5.2 फीसद रह गई, जो पिछले साल की समान अवधि में 10.3 फीसद थी।
छह प्रमुख बुनियादी ढाँचा उद्योगों की विकास दर पहली तिमाही में घटकर 3.5 फीसद हो गई, जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह 6.4 फीसद थी। औद्योगिक उत्पादन विस्तार में इन बुनियादी ढाँचा उद्योगों की हिस्सेदारी 26.68 फीसद है।
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक द्वारा मापे गए पहली तिमाही के आँकड़ों के आधार पर अर्थशास्त्रियों ने कहा कि चालू वित्त वर्ष के दौरान आर्थिक विकास दर घटकर 8 फीसदी के नीचे आ जाएगी, जो 2007-08 के दौरान 9.1 फीसदी थी। जून के महीने में औद्योगिक विकास घटकर 5.4 फीसदी हो गई जो पिछले साल की समान अवधि में 8. 9 फीसदी थी।
विनिर्माण क्षेत्र की विकास दर पिछले साल की समान अवधि की 9.7 फीसदी दर के मुकाबले घटकर 5.9 फीसदी हो गई। बिजली उत्पादन की घटकर 5.4 फीसदी हो गई जो पिछले साल 8.9 फीसदी थी।
बरुआ ने कहा कि ब्याज दरों में बढ़ोतरी हुई है और अमेरिका एवं शेष एशिया में निर्यात में कमी आई है। ईंधन की की लागत बढ़ी है, जिनके कारण विनिर्माण क्षेत्र में मंदी आई है।
उपभोक्ता ड्यूरेबल क्षेत्र जो अब तक सरकार के लिए चिंता का विषय था, जून के दौरान उसमें 3.5 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में 3.6 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई थी। हालाँकि अर्थशास्त्री उपभोक्ता ड्यूरेबल क्षेत्र के उबरने की वजह का खुलासा नहीं कर पाए। बरुआ ने कहा कि कच्चे तेल के उत्पादन में आपूर्ति की समस्या है। इससे किसी दीर्घकालिक रूख का संकेत नहीं मिलता। जून के दौरान उपभोक्ता नान-ड्यूरेबल में 12.2 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई जो पिछले साल की समान अवधि में 6.3 फीसदी थी।
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