सरकार ने छठे पे कमिशन की सिफारिशों में जो सुधार किए हैं, उन पर किसी को अब भी एतराज हो सकता है, लेकिन ऐसा ज़रूर लगता है कि सरकार ने इस पैकेज को उस हद तक बेहतर बनाया है, जिस हद तक उसका वित्तीय हिसाब इजाज़त देता था।
वैसे पैसे के मामले में कसर हमेशा रह जाती है और संतोष एक नामुमकिन सी चीज़ है, लेकिन हम मानते हैं कि सरकारी कर्मचारी ठीकठाक बढ़ोतरी के हकदार ज़रूर थे। हाल के बरसों में देश में सैलरी का पूरा माहौल बदल चुका है। सरकारी नौकरी अपनी चमक खो चुकी है और काबिल लोग उससे दूर हट रहे हैं। फिर महंगाई की मार एक ऐसी आफत है, जिसे उस क्लास के लोग ही सबसे ज़्यादा झेल रहे हैं, जिसमें सरकारी कर्मचारी आते हैं। यह क्लास अपनी कमाई से पूरा टैक्स कटवाए बिना नहीं रह सकता। लिहाजा रिवीजन ज़रूरी था और चूंकि कर्मचारी उसे वाजिब नहीं मान रहे थे, इसलिए उसमें सुधार करना भी सरकार का फर्ज़ था।
कमिशन ने निचले और ऊपरी तबके के बीच जो बड़ा फर्क पैदा कर दिया था, उसे भी घटाने की कोशिश अब की गई है। अब भी अगर नाइंसाफी या गैरबराबरी की सच्ची शिकायत कहीं से उठती है, तो उसे सुनने और दूर करने में सरकार को हिचक नहीं होनी चाहिए। खास तौर से सेनाओं में कोई मलाल बचा नहीं रहना चाहिए। बहरहाल, कुछ बातें बाकी रह जाती हैं, जिन पर अब गौर करना होगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सरकारी नौकरियों को आकर्षक और उपयोगी बनाने के लिए पैसा सिर्फ एक फैक्टर है। उन्हें प्रफेशनल, सियासत की दखलंदाज़ी से आजाद और स्मार्ट बनाने की ज़िम्मेदारी भी अब निभाई जानी चाहिए।
अच्छी सैलरी पाने की दावेदारी तभी टिकती है, जब वर्क फोर्स वाकई एफिशिएंट हो। प्राइवेट सेक्टर से तुलना करने वाले सरकारी कर्मचारियों को काम के उस माहौल को भी अपनाना चाहिए जहां हर दिन आपको अपनी काबिलियत साबित करनी पड़ती है। यह ख्वाब तो अब कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता कि सरकारी नौकरी आजीवन पेंशन की तरह है। काम कराने और उसका हिसाब लेने का वक्त अब आ जाना चाहिए। अब यह भी तय होगा कि पे कमिशन लागू होने के साथ आर्थिक मोर्चे पर जो दबाव पैदा होने वाले हैं, उनका सामना हम कैसे करते हैं। मसलन इससे बहुत सा पैसा बाज़ार में आएगा, जो महंगाई बढ़ाएगा और उससे इंटरेस्ट रेट फिर ऊपर जाने लगेंगे।
अगर सरकार इस नए खर्च के लिए उधार लेती है, तो उससे भी ब्याज दरें बढ़ेंगी। यह पे कमिशन का गहरा साइड इफेक्ट है, जिससे मज़ा खराब हो सकता है, उन लोगों के लिए भी, जो नई सैलरी नहीं पाएंगे यानी जो सरकारी कर्मचारी नहीं हैं। सरकार के लिए एक और समस्या -घाटे की, अब पहले से ज़्यादा तीखी हो जाएगी। फाइनैंस मिनिस्टर का कहना है कि उनके पास सारे इंतजाम हैं, लेकिन हमारा वित्तीय अनुशासन पहले से ही गड़बड़ाया हुआ है। अगर पे कमिशन की वजह से घाटा बढ़ा, तो बहुत सी उलझनें पैदा होंगी।
No comments:
Post a Comment