अंकुर वत्स
क्लाइमेट चेंज की समस्या से न सिर्फ विश्व के राजनीतिज्ञों, बल्कि पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों की भी चिंता बढ़ी है। वे अब ऐसी कवायद में जुटे हैं, जिसके तहत ऊर्जा की जरूरत भी पूरी हो जाए और वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन भी कम हो। ब्रिटेन की 'आईटीएम पावर' नामक कंपनी ने इस दिशा में ऐसा ही सराहनीय प्रयास किया है।
कंपनी ने हाइड्रोजन गैस पैदा करने वाला जेनरेटर तैयार किया है। इसका आकार ज्यादा बड़ा नहीं है। इसे गराज अथवा घरों में आसानी से रखा जा सकता है। कंपनी का दावा है कि इससे लोगों को बिजली का भारी भरकम बिल चुकाने से राहत मिलेगी। कार चलाने के लिए भी यह गैस कारगर होगी। साथ ही, कार्बन के उत्सर्जन से भी निजात मिलेगी। उम्मीद है कि अगले दो सालों में इसका व्यावसायिक इस्तेमाल शुरू हो जाएगा। इसकी कीमत 2,000 पाउंड (लगभग डेढ़ लाख रुपये) होगी।
आईटीएम पावर ने 'फोर्ड फोकस' कार का भी अनावरण किया। इसके स्वरूप में बदलाव किया गया है, ताकि हाइड्रोजन की मदद से इसे चलाया जा सके। कंपनी ने लंदन स्थित 'सोसायटी ऑफ मोटर मैन्युफैक्चरर्स ऐंड ट्रेडर्स' में इस नई तकनीक (जेनरेटर) का अनावरण किया। इसके निर्माताओं का कहना है कि इसकी मदद से हाइड्रोजन से वीइकल न चला पाने की समस्या दूर हो जाएगी। हाइड्रोजन पैदा करने वाले कम लागत के जेनरेटर को शेफील्ड रिसर्च बेस में तैयार किया गया और इसे बनाने में वैज्ञानिकों को 8 साल लग गए।
आईटीएम का दावा है कि पारंपरिक तरीकों से हाइड्रोजन गैस तैयार करने में जितना खर्च आता है, उसके केवल एक प्रतिशत से ही इस जेनरेटर की मदद से हाइड्रोजन गैस तैयार की जा सकती है।
आईटीएम पावर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जिम हीथकोट ने कहा कि जीवाश्म ईंधन विशेषकर तेल पर निर्भरता कम करने और कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन कम करने की जरूरत के मद्देनजर एक विकल्प के रूप में हाइड्रोजन का भविष्य कभी भी उज्ज्वल नहीं रहा। लेकिन, अब परिस्थितियां धीरे धीरे बदल रहीं हैं। उन्होंने बताया कि इस जेनरेटर का एक कमजोर पक्ष यह है कि इसे चलाने के लिए बिजली की जरूरत पड़ती है।
पौधों की आवाज बताएगी प्रदूषण का स्तर
तेल अवीव : अब पौधे बताएंगे पानी में कितना प्रदूषण है। जल्द ही पौधों की आवाज को सुनकर यह जाना जा सकेगा कि जिस पानी में पौधे पनप रहे हैं वहां कितनी गंदगी है।
इस्राइली वैज्ञानिकों ने इस बारे में पौधों की आवाज सुन पाने की एक नई तकनीक विकसित की है। इसके तहत पानी में तैरने वाले शैवालों के उपर लेजर किरणें डाली जाती हैं जिससे एक अजीब तरह की तंरगें निकलती हैं जो पानी में प्रदूषण की मात्रा को बताती हैं।
इस्राइल के बार इलान विश्वविद्यालय के जल जैव प्रौद्योगिकी के विशेषज्ञ जुवी दुबीनस्की ने कहा कि लेजर किरणें पड़ते ही इन शैवालों में से एक खास तरह की तरंगे निकलने लगती हैं इनसे जल प्रदूषण का पता लग जाता है। दुबीनस्की के मुताबिक शैवाल जल प्रदूषण के प्रति सबसे संवदेनशील होते हैं।
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