rashtrya ujala

Saturday, August 9, 2008

पहचानें अपने वास्तविक स्वरूप को

- चंद्रशेखर तापी


ND
इस सुंदर जगत के रचनाकार उस परमात्मा ने हर जगह आनंद ही आनंद बिखेरा हुआ है। जब व्यक्ति का संपर्क उस जगत चालक से होता है तो वह भी उस परमानंद को प्राप्त करता है। उस परमानंद को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को अपने स्वयं के वास्तविक स्वरूप को पहचानना नितांत आवश्यक है और अपने उस मूल स्वरूप को जानने के लिए प्रभु के नाम में तल्लीन होना अत्यंत आवश्यक है।
परमात्मा के उस नाम में इतना सामर्थ्य है कि वह जहाँ भी होता है, वहाँ हर बात पावन हो जाती है। परमात्मा के उस पावन नाम के सान्निध्य में व्यक्ति को सदा रहने का प्रयत्न करना चाहिए और पहले उसका पूर्ण लाभ ले लेना चाहिए तथा अपने जीवन का कल्याण कर लेना चाहिए। संत-महात्मा स्वयं परमात्मा का नाम लेकर स्वयं के जीवन का कल्याण करते हैं और परमानंद की प्राप्ति करते हैं, जिससे उनके साथ-साथ सारे जगत का भी कल्याण होता है।
ब्रह्मचैतन्य महाराज के सत शिष्य दत्ता भैया ने अपने दैनिक जीवन के उदाहरण के माध्यम से हमें मार्गदर्शन दिया है। दत्ता भैया कहते हैं कि घर में महिलाएँ जब प्रेशर कुकर में खाना बनाती हैं तो उस प्रेशर कुकर में जिस वाष्प का निर्माण होता है, वह वाष्प प्रेशर कुकर के अंदर विद्यमान खाने को सबसे पहले पकाती है और उसके बाद ही वह सीटी जैसी आवाज के साथ बाहर निकलती है। इस आवाज के कारण घर के ही नहीं वरन अड़ोस-पड़ोस के लोगों को भी पता चल जाता है कि घर में खाना बन रहा है।दत्ता भैया कहते हैं कि इसी प्रकार व्यक्ति के जीवन में होना चाहिए। व्यक्ति को अपने जीवन में परमात्मा के पावन नाम का सुमिरन करके अपने अंतरतम को अर्थात अपने मन, हृदय को प्रभु नाम से परिपूर्ण कर प्रभु प्रेम से भर लेना चाहिए और जब व्यक्ति का जीवन पूर्णरूपेण ईश्वर प्रेम से परिपूर्ण हो जाता है, तब व्यक्ति के अंतरतम के साथ-साथ बाहर से भी उसके व्यक्तित्व में हरिनाम की आभा झलकने लगती है।
उस व्यक्ति के आचरण से लोगों को पता लग जाता है कि इसका जीवन नाममय व आनंदमय हो गया है और ऐसे व्यक्ति के संग से दूसरे लोगों का जीवन भी हरिनाम से पावन हो जाता है। दत्ता भैया कहते हैं कि व्यक्ति को अपने जीवन में राम नाम के पावन प्रेम से अपने समग्र जीवन को नाममय करते हुए आनंदित जीवन व्यतीत करना चाहिए।

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