सावन के महीने में शिव की उपासना का सोमवार को तीसरा सोमवार और सुवर्ण गौरी व्रत है। साल में तीन तीजें मनाई जाती हैं- हरियाली तीज, कजरी तीज और हरतालिका तीज। लेकिन इनके मनाए जाने के महीने अलग-अलग हैं। सोमवार को हरियाली तीज है।
यह मुख्य रूप से महिलाओं का त्योहार है। इस दिन कुछ स्त्रियां परिवार में सुख-शांति के लिए व्रत भी रखती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद भोजन ग्रहण करती हैं, हालांकि व्रत रखना जरूरी नहीं होता। इसी तरह यह वाली तीज सिर्फ विवाहित स्त्रियाँ ही नहीं, बल्कि कुमारी कन्याएँ भी मना सकती हैं। नवविवाहित और सुहागिन स्त्रियां अपने मायके में इस त्योहार को मनाती हैं। उनको मायके वालों की तरफ से वस्त्र, मिष्ठान और द्रव्य आदि से नवाजा जाता है। जिन युवतियों की शादी तय हो जाती है, उन्हें उनके ससुरालियों की ओर से उपहार आदि भेंट किए जाते हैं।
हरियाली तीज मुख्यत: धरती पर छाई लहलहाती फसल की खुशी और अच्छी पैदावार की कामना से मनाई जाती है। इस मौके पर स्त्रियां हरे रंग के परिधान पहनती हैं। इस तीज पर मेहंदी का खास महत्व है। वे अपने हाथों पर मेहंदी रचाती हैं और हरी चूड़ियां डालती हैं। विवाहित और अविवाहित सभी युवतियां सहेलियों के साथ झूलों पर झूलती हुई सावन से संबंधित गीत गाती हैं। ये गीत सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक सभी तरह के प्रसंगों से सराबोर होते हैं।
अब शहरों में भी इस मौके पर तीज मेलों का आयोजन किया जाने लगा है। शहरी मेलों में तो झूले और खानपान की दुकानें ही मुख्य आकर्षण होती हैं। हरियाली तीज के एक दिन पहले महिलाएं सिंधारा त्योहार मनाती हैं। इसका नवविवाहिता स्त्रियों के लिए विशेष महत्व है। शादी के बाद पहले सिंधारा पर उन्हें अच्छे परिधान और गहने आदि भेंट किए जाते हैं।
वृंदावन स्थित बांके बिहारी मंदिर में इस दिन कृष्ण और राधा की स्तुति और आराधना की जाती है। वृंदावन में यह त्योहार जन्माष्टमी तक मनाया जाता है। माना जाता है कि बाल्यकाल में कृष्ण, राधा को झूला झुलाते थे और सभी गोपिकाएं उनका साथ देती थीं। कृष्ण भक्त उमंग और खुशी के साथ यह त्योहार मनाते हैं। साल में केवल हरियाली तीज के दिन कृष्ण को झुलाने के लिए सोने का झूला तैयार किया जाता है। मंदिर में पूजा के बाद श्रद्धालुओं पर जल छिड़का जाता है, जो यह दर्शाता है कि अब मॉनसून पूरे यौवन पर है। वैसे यह त्योहार दिल्ली, राजस्थान, यूपी और एमपी में खासतौर से मनाया जाता है।
राजस्थान में शिव और पार्वती की पूजा का रिवाज है। गुजरात और महाराष्ट्र में भी महिलाएं राजस्थान की रीति-रिवाज का ही अनुसरण करती हैं। गुजरात में इस मौके पर गरबा नृत्य करती हुई स्त्रियां पार्वती की स्तुति में गीत गाती हैं। शिव पुराण के अनुसार हरियाली तीज के दिन ही शंकर और पार्वती का मिलन हुआ था। हरियाली तीज पर वैसे तो कई जगह मेलों का आयोजन किया जाता है, लेकिन जयपुर (राजस्थान) का मेला विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
मंगलवार को मुस्लिम महीना शाबान शुरू होगा। बुधवार को कल्कि जयंती है। श्रीमद्भागवत में वर्णन है कि त्रेता में राजा परीक्षित के शासन काल में ही कलियुग ने अपना स्थान जमा लिया था। कलियुग में आसुरी शक्तियों के विनाश के लिए विष्णु पुन: भगवान कल्कि के रूप में जन्म लेंगे। उनका वाहन घोड़ा होगा। कलियुग में कर्म के आधार पर ही मनुष्य को गति मिलेगी, ऐसा वर्णन भागवत में विस्तार से है।
राजस्थान और प। बंगाल में सावन के कृष्ण पक्ष की पंचमी को मनाई जाने वाली नागपंचमी का जिक्र हम इससे पहले कर चुके हैं। आज भी नागपंचमी है, जो उत्तर भारत और अन्य प्रांतों में ज्यादा व्यापक रूप से मनाई जाती है। इस दिन लोग व्रत रखकर सर्पराज तक्षक की पूजा करते हैं। सांपों को दूध पिलाकर उनकी आराधना की जाती हैं। ग्रामीण इलाकों में घरों के दरवाजों पर गोबर से सर्प की आकृति बनाकर उनका पूजन किया जाता है। साथ ही रात में चारपाइयों के नीचे किसी बर्तन में दूध रखा जाता है। माना जाता है कि सर्पराज रात में दूध पीने आते हैं और घर में खुशहाली का आशीर्वाद देते हैं। यह भी मान्यता है कि ऋग और यजुर्वेद की रचना आज के दिन ही शुरू हुई थी। गुरुवार को चंद षष्ठी व्रत है। कुंवारी लड़कियां और नवविवाहित युवतियां इस दिन उपवास रखती हैं। शुक्रवार को गोस्वामी तुलसीदास की जयंती है। शनिवार को दुर्गाष्टमी व्रत है। आज मेला चिंतपूर्णी समाप्त हो जाएगा। हिमाचल के बिलासपुर में मेला नैना देवी का आयोजन होगा। तिप्रस्तु : रमेश चंद
यह मुख्य रूप से महिलाओं का त्योहार है। इस दिन कुछ स्त्रियां परिवार में सुख-शांति के लिए व्रत भी रखती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद भोजन ग्रहण करती हैं, हालांकि व्रत रखना जरूरी नहीं होता। इसी तरह यह वाली तीज सिर्फ विवाहित स्त्रियाँ ही नहीं, बल्कि कुमारी कन्याएँ भी मना सकती हैं। नवविवाहित और सुहागिन स्त्रियां अपने मायके में इस त्योहार को मनाती हैं। उनको मायके वालों की तरफ से वस्त्र, मिष्ठान और द्रव्य आदि से नवाजा जाता है। जिन युवतियों की शादी तय हो जाती है, उन्हें उनके ससुरालियों की ओर से उपहार आदि भेंट किए जाते हैं।
हरियाली तीज मुख्यत: धरती पर छाई लहलहाती फसल की खुशी और अच्छी पैदावार की कामना से मनाई जाती है। इस मौके पर स्त्रियां हरे रंग के परिधान पहनती हैं। इस तीज पर मेहंदी का खास महत्व है। वे अपने हाथों पर मेहंदी रचाती हैं और हरी चूड़ियां डालती हैं। विवाहित और अविवाहित सभी युवतियां सहेलियों के साथ झूलों पर झूलती हुई सावन से संबंधित गीत गाती हैं। ये गीत सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक सभी तरह के प्रसंगों से सराबोर होते हैं।
अब शहरों में भी इस मौके पर तीज मेलों का आयोजन किया जाने लगा है। शहरी मेलों में तो झूले और खानपान की दुकानें ही मुख्य आकर्षण होती हैं। हरियाली तीज के एक दिन पहले महिलाएं सिंधारा त्योहार मनाती हैं। इसका नवविवाहिता स्त्रियों के लिए विशेष महत्व है। शादी के बाद पहले सिंधारा पर उन्हें अच्छे परिधान और गहने आदि भेंट किए जाते हैं।
वृंदावन स्थित बांके बिहारी मंदिर में इस दिन कृष्ण और राधा की स्तुति और आराधना की जाती है। वृंदावन में यह त्योहार जन्माष्टमी तक मनाया जाता है। माना जाता है कि बाल्यकाल में कृष्ण, राधा को झूला झुलाते थे और सभी गोपिकाएं उनका साथ देती थीं। कृष्ण भक्त उमंग और खुशी के साथ यह त्योहार मनाते हैं। साल में केवल हरियाली तीज के दिन कृष्ण को झुलाने के लिए सोने का झूला तैयार किया जाता है। मंदिर में पूजा के बाद श्रद्धालुओं पर जल छिड़का जाता है, जो यह दर्शाता है कि अब मॉनसून पूरे यौवन पर है। वैसे यह त्योहार दिल्ली, राजस्थान, यूपी और एमपी में खासतौर से मनाया जाता है।
राजस्थान में शिव और पार्वती की पूजा का रिवाज है। गुजरात और महाराष्ट्र में भी महिलाएं राजस्थान की रीति-रिवाज का ही अनुसरण करती हैं। गुजरात में इस मौके पर गरबा नृत्य करती हुई स्त्रियां पार्वती की स्तुति में गीत गाती हैं। शिव पुराण के अनुसार हरियाली तीज के दिन ही शंकर और पार्वती का मिलन हुआ था। हरियाली तीज पर वैसे तो कई जगह मेलों का आयोजन किया जाता है, लेकिन जयपुर (राजस्थान) का मेला विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
मंगलवार को मुस्लिम महीना शाबान शुरू होगा। बुधवार को कल्कि जयंती है। श्रीमद्भागवत में वर्णन है कि त्रेता में राजा परीक्षित के शासन काल में ही कलियुग ने अपना स्थान जमा लिया था। कलियुग में आसुरी शक्तियों के विनाश के लिए विष्णु पुन: भगवान कल्कि के रूप में जन्म लेंगे। उनका वाहन घोड़ा होगा। कलियुग में कर्म के आधार पर ही मनुष्य को गति मिलेगी, ऐसा वर्णन भागवत में विस्तार से है।
राजस्थान और प। बंगाल में सावन के कृष्ण पक्ष की पंचमी को मनाई जाने वाली नागपंचमी का जिक्र हम इससे पहले कर चुके हैं। आज भी नागपंचमी है, जो उत्तर भारत और अन्य प्रांतों में ज्यादा व्यापक रूप से मनाई जाती है। इस दिन लोग व्रत रखकर सर्पराज तक्षक की पूजा करते हैं। सांपों को दूध पिलाकर उनकी आराधना की जाती हैं। ग्रामीण इलाकों में घरों के दरवाजों पर गोबर से सर्प की आकृति बनाकर उनका पूजन किया जाता है। साथ ही रात में चारपाइयों के नीचे किसी बर्तन में दूध रखा जाता है। माना जाता है कि सर्पराज रात में दूध पीने आते हैं और घर में खुशहाली का आशीर्वाद देते हैं। यह भी मान्यता है कि ऋग और यजुर्वेद की रचना आज के दिन ही शुरू हुई थी। गुरुवार को चंद षष्ठी व्रत है। कुंवारी लड़कियां और नवविवाहित युवतियां इस दिन उपवास रखती हैं। शुक्रवार को गोस्वामी तुलसीदास की जयंती है। शनिवार को दुर्गाष्टमी व्रत है। आज मेला चिंतपूर्णी समाप्त हो जाएगा। हिमाचल के बिलासपुर में मेला नैना देवी का आयोजन होगा। तिप्रस्तु : रमेश चंद
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