rashtrya ujala

Friday, August 1, 2008

वामपंथी राजनीति के ‘चाणक्य’ थे सुरजीत

01 अगस्त 2008 दिल्ली। वामपंथी राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले हरकिशन सिंह सुरजीत पांच दशकों तक भारतीय राजनीति में छाये रहे। केन्द्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार को वामपंथी दलों का समर्थन दिलाने तथा 1990 के दशक में भारतीय जनता पार्टी विरोधी कई गठबंधन बनाने में उन्होंने अहम भूमिका निभायी।
आज दिवंगत हुए सुरजीत 92 वर्ष के थे। वह पिछले काफी समय से बीमार थे।
स्वर्गीय सुरजीत 1992 से 2005 तक मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव तथा 1964 से लेकर 2008 तक पार्टी पोलित ब्यूरों के सदस्य रहे।
पंजाब के जालंधर जिले के बादला में जस्सी जाट परिवार में 23 मार्च 1916 को जन्में सुरजीत ने भगत सिंह के समर्थक के रूप में किशोरवस्था में ही अपने राजनीतिक जीवन की शुरआत की थी। उन्होंने वर्ष 1930 में भगत सिंह की पार्टी नौजवान सभा में शामिल होकर आजादी के आन्दोलन में शिरकत की।
भगत सिंह के शहीदी दिवस की वर्षगांठ पर उन्होंने होशियारपुर की अदालत में तिरंगा फहराया था। तिरंगा फहराने के दौरान उन पर दो बार फायरिंग की गयी। बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें इसके लिए दंडित किया। अदालत में उन्होंने अपना नाम ‘लंदन तोड़ सिंह’ बताया था।
वर्ष 1936 में स्व. सुरजीत भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) में शामिल हो गये। वह पंजाब में किसान सभा के सह संस्थापक थे। उन्होंने ‘दुखी दुनिया और चिंगारी’ का प्रकाशन शुरू किया। आजादी की लड़ाई के दौरान वह जेल गये। देश के आजाद होने और 1947 में विभाजन के बाद वह भाकपा की पंजाब इकाई के महासचिव चुने गये।
पढ़ें: माकपा नेता हरकिशन सुरजीत नहीं रहे
स्व. सुरजीत ने वर्ष 1959 में पंजाब में ऐतिहासिक कर विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया था। उन्होंने किसानों की बेहतरी के लिए बहुत काम किया जिसे देखते हुए उन्हें अखिल भारतीय किसान सभा का महासचिव तथा बाद में इसका अध्यक्ष चुना गया। उन्होंने कृषि कामगार यूनियन में काम किया। वर्ष 1964 में जब भाकपा का विभाजन हुआ तो सुरजीत ने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का साथ दिया। माकपा की पहली पोलित ब्यूरो के नौ सदस्यों में वह एक थे।
स्व. सुरजीत पार्टी में लगातार अपनी पकड़ मजबूत बनाते गये और 1992 में वह पार्टी के महासचिव निर्वाचित हुए तथा वर्ष 2005 तक वह इस पद पर बने रहे। सुरजीत भाजपा और सांप्रदायिकता के कट्टर विरोधी के रूप में जाने जाते थे। केन्द्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार को वामपंथी दलों का समर्थन दिलाने तथा 1990 के दशक में भाजपा विरोधी कई गठबंधन बनाने में अहम भूमिका निभायी थी।
महासचिव का पद छोड़ने के बाद सुरजीत देश की राजनीति में सक्रिया भूमिका निभाते रहे। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद और 1996-1998 की संयुक्त मोर्चा सरकार के दौरान केन्द्रीय राजनीति में गठबंधनों को बनाने में उन्होंने चाणक्य की भूमिका निभायी।
खराब स्वास्थ्य के कारण सुरजीत को अप्रैल 2008 के माकपा की 19वीं कांग्रेस में पहली बार पार्टी पोलित ब्यूरो में शामिल नहीं किया गया। उन्हें केन्द्रीय समिति में विशेष आमंत्रित सदस्य का दर्जा दिया गया।